हेमाभांगरुचिं शशांक-मुकुटां सच्चम्पक स्रग्युताम्।। धारक के जीवन से नकारात्मक ऊर्जाओं और तांत्रिक क्रियाओं के प्रभाव समाप्त होते है। इति ते कथितं देवि कवच परमाद्भुतम्॥ १७ ॥ विनाशयपदं पातु पादांगुर्ल्योनखानि मे। रंध्रं हि बगलादेव्या: कवचं सन्मुखोदितम्। न वै देयममुख्याय सर्वसिद्धि प्रदायकम्।। पीताम्बरधरा पातु सर्वांगं शिवंनर्तकी। श्रीविद्या समयं पातु मातंगी पूरिता https://josephq763uhs6.blogsuperapp.com/profile